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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्
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Wednesday, March 7, 2012

वाह होली वाह !!!

 [चित्र द्वारा: सोनाली सिंह ]



तक धिनैया तक धिनैया फागुन के बयार 
आ गईल हो आ गईल होली के त्यौहार 

तक धिनैया तक धिनैया दौड़अ पकड़अ ट्रेन 
जल्दी से पहुँचअ गाँव बीत न जाए रैन 

तक धिनैया तक धिनैया जियरा नहीं बस में 
नशा चढ़ते जात हई सगरे अंग अंग में 

तक धिनैया तक धिनैया उड़े रंग गुलाल 
लगवा ल रंगवा ल  तू हो आपन गाल 

तक धिनैया तक धिनैया ढोलक संग मृदंग 
झाल तबला हारमोनियम में मचल जंग 

तक धिनैया तक धिनैया गाओ मिलके फाग 
सुर में सुर मिल जाये छेड़ो अईसन राग 

तक धिनैया तक धिनैया एकसे एक पकवान 
पुआ पुरी गुझिया बाड़ा और सुपारी पान 

तक धिनैया तक धिनैया जीजा गए ससुराल 
खूब खातिर भईल उनकर का बताई हाल 

तक धिनैया तक धिनैया भांग के करामात 
सुन ल सब केहु आज बुढऊ के जज़्बात 

तक धिनैया तक धिनैया सजना दूर दराज 
गवना न भईल ई साल सजनी बा उदास 

तक धिनैया तक धिनैया छूट गईल बिहार 
दिल्ली बम्बई के चक्कर में जिनगी बेकार 

होली है !!
- सुलभ 


Thursday, July 21, 2011

भारत वर्ष !



जब आंतरिक मामले हों कमजोर 
और हास्यास्पद हो विदेश नीति
अनुशाशन शुचिता क़ानून प्रबंधन 
शून्य हों राजनैतिक इच्छाशक्ति 

भ्रष्टाचार के नशे में धुत गाड़ीवान 
जब हम बैलों के ऊपर बोझ लादे 
जबरन पिलाए रोज दूषित पानी
और शाम बारूद के उपर खूंटे बांधे 

इसे आजादी का चरमोत्कर्ष कहिये 
विशाल लोकतंत्र भारत वर्ष कहिये !!
 - सुलभ

Tuesday, April 20, 2010

हसबैंड वाईफ चैटिंग

बहुत दिनों से हास्य की रसोई में कुछ नया खिचड़ी नहीं पका. सो एक पुराना अनुभव दे रहा हूँ, जब Windows की समस्याओं से परेशान होकर एक हास्य  रचना इस प्रकार अवतरित हुई थी..... उन दिनों चैटिंग का मजा बेचलर्स ज्यादा उठाते थे.... लेकिन अब तो हसबैंड मशीनी हो गए...




पत्नी:  Hello
पति:  वेलकम टू  माय ऑफिस (XP)
पत्नी:  और बताओ कैसे हो
पति:  कृपया
पहले लॉगिन करें
पत्नी:  एक ज़रूरी बात सुनो. घर पर कुछ मेहमान आये हैं. शाम को जल्दी लौटना.
पति:  नो गेस्ट यूजर्स आर अलाउड टू एक्सेस.
पत्नी:  और सुनो, घर लौटना तो कुछ पैसे लेकर आना. मुझे कुछ खरीदारी करनी है.
पति: 
सॉरी! देअर इज नोट इनफ मेमरी (मनी) टू रन योर प्रोग्राम.
पत्नी:  मजाक बाद में करना. मैं इंतज़ार करुँगी, जल्दी आना और पैसे भूलना नही.
पति: 
योर रिक्वेस्ट हैज़ नोट बीन डेलीवर्ड. प्लीज चेक योर नेटवर्क कांफीग्रेशन.
पत्नी:  कहां हो तुम?
पति: 
द पेज केन्नोट बी डिसप्लेड.
पत्नी:  मैं पूछ रही हूं, कहां हो तुम?
पति: 
क्लिक "येस" टू कांटीन्यू ओर प्रेस "कैंसल" टू क्विट द प्रोग्राम .
पत्नी:  ओफ्फ़! क्या मुसीबत है.
पति:  सर्वर बिजी. प्लीज ट्राई आफ्टर सम टाइम.
पत्नी:  बंद करो अपनी बकवास !
पति:  प्रेस CTRL + ALT + DEL टू री-स्टार्ट द सिस्टम.
पत्नी:  तुम नही सुधरोगे.
पति:  रिपोर्ट दिस एरर टू माइका-वेबसाइट.
पत्नी:  मैं जा रही हूँ.
पति:  थैंक यु फॉर यूजिंग कूल ऑपरेटिंग सिस्टम. काइंडली यूज दिस फॉर्म टू सेंड योर फीडबैक.
पत्नी:  आइन्दा मुझसे बात करने की कोशिश मत करना.
पति:  नॉव यु केन शटडाउन.
पत्नी:  हुंह !!!!!
पति:  डोंट फोरगेट तो टर्न ऑफ यूपीएस.
 

 - सुलभ

Monday, January 4, 2010

छोटी सी ठंडी एक कविता

आज ठण्ड और कोहरा इतना ज्यादा है की पोस्ट लिखना तो दूर पोस्ट पढना भी मुश्किल हो रहा है.
शुक्र है एक छोटी सी कविता पढने को मिली, तो मैंने भी आज एक छोटी कविता कह दी.





 सुबह देर तक
बंद रहे किवाड़
ठण्ड में सूरज भी कहाँ निकला 


-सुलभ
  

Wednesday, August 26, 2009

अहसास


(Click on image to read this poem)

Sunday, July 19, 2009

राईटर बनाम कंप्युटर - व्यंग्य कविता



कोई कहता है - मैं एक लीडर हूँ, कोई कहता है - फटीचर हूँ तो किसी के नज़र में मैं घनचक्कर हूँ ।
मैं आपको बता दूँ - ना तो मैं लीडर हूँ, न फटीचर या न ही कोई घनचक्कर हूँ ।
मैं तो सिर्फ़ एक कंप्यूटर हूँ।

यह सुन एक सज्जन बोले - आप कंप्यूटर कैसे हैं? हमे थोड़ा समझायेंगे, ज़रा खुलासा करके बताएँगे।

इस पर मैंने कहा - आप सूचना युग में नये मालूम पड़ते हैं, लगता है आप कंप्यूटर का इस्तेमाल नही करते हैं।
असल में मैं 'सातवें जेनरेशन का कंप्यूटर' हूँ जो अभी इस संसार में नही आया है।

सज्जन ने आश्चर्य से अपना मुंह खोला और जिज्ञासा से बोला - सातवें जेनरेशन का कंप्यूटर, ये कैसा होता है?
मैंने कहा - ये दिखने में हम इंसानों जैसा ही होता है। और एक बात पर आप जरूर गौर फरमायें। मुझमे और उस सातवें जेनरेशन के कंप्यूटर में है बहुत सारी समानताएं।

वो बहुत तेज़ गति से गणनाएं कर लेता है, नेचर में सुपर फार्स्ट है।
वैसे मेरे प्रोसेसिंग स्पीड भी फर्स्टक्लास है।
वो कंप्यूटर सेकंड भर में चाँद पर से सूचनाएं ले आएगा।
मुझसे भी आप जो मांगो पल भर में मिल जाएगा।
उसके पास बहुत कैपसिटी वाली मेमोरी होगी, जिसमे वो अनगिनत डाटा सेव कर सकता है।
मेरा ह्रदय भी विशाल है जहाँ भावनाओं का समंदर ठहर सकता है।
उस कंप्यूटर के बॉडी में उसके निर्माता कंपनी का लोगो शीट होता है।
अलबत्ता मेरे प्रमाण-पत्रों पर भी मेरे पिता का नाम फिक्सड होता है।

उसके पास एक महत्वपूर्ण चीज़ होती है - मदरबोर्ड। जिसके बिना वो चल नही सकता, जिसके बगैर वो बेजान है।

मेरे पास भी एक मदर (माँ) है जिसके बिना मेरी दुनिया वीरान है।

हम दोनों में एक और बात ख़ास है - लिखने बोलने के अलावा सोचने वाला सोफ्टवेयर भी साथ है।

उस विलक्षण कंप्यूटर को आप जितना भी इस्तेमाल करले वो कभी पुराना नही होगा, कभी ख़त्म नही होगा।
मुझे भी आप जितना चाहो यूज कर लो मेरी कीमत कभी कम नही होगी, मेरा हौसला पस्त नही होगा।

भविष्य का वह कंप्युटर इतना स्मार्ट होगा की यदि आप उसमे शब्द इनपुट करेंगे तो वह आउट पुट मे कवितायें
बनाएगा। मुझे भी आप दर्द और तकलीफें दो तो मैं भी नॉन-स्टाप कवितायें सुनाऊंगा।

इतनी सारी समानताएं होने के बाद भी मुझमे और उस सातवें जेनरेशन के कंप्यूटर में कुछ मौलिक अन्तर होगा।

भले ही वो जीरो मेंटेनेंस पर फुल्ली ऑटोमेटिक हो, मगर उसको वो ही खरीद पायेगा जिसके पास दिमाग और जेब में हजारो का बज़ट हो। लेकिन मुझे तो एक अनाड़ी भी खरीद सकता है, शर्त सिर्फ़ इतनी की उसके दिल में प्यार और इज्ज़त हो।

माना की वह मेडिकल और फाइनेंस के जटिल मामले क्षण भर में सुलझायेगा मगर मेरी तरह खेतों में चने कहाँ से उगायेगा। वो भले ही विद्वान् अर्थशास्त्रियों की तरह लंबे भाषण दे दे लेकिन गरीब भूखी जनता के लिए राशन कहाँ से लायेगा।

वो एडवांस कंप्यूटर बच्चो को मैथ जरूर सिखायेगा लेकिन उसे जंगल की परियों वाली कहानियाँ नही सुनायेगा ।
और जब देखेगा वो आपकी आंखों में आंसू तो उसे पोछने अपना हाथ नही बढ़ाएगा।
क्योंकि वो सातवें जेनरेशन का एक मशीन होगा जिसे लोग कंप्यूटर बोलेंगे ।
और मैं आज के जेनरेशन का एक इंसान हूँ जिसे लोग कवि या राईटर बोलेंगे ॥

Tuesday, January 20, 2009

परिवर्तन

समय का पहिया पल पल आगे बढ़ता जाय
यू ही देखते देखते जनवरी दिसम्बर बन जाय
जनवरी दिसम्बर बन जाय काम अच्छे करो सारे
कर्मफल मिलेगा यहीं बात समझो प्यारे
कह सुलभ कविराय 'परिवर्तन' है एक अटल नियम
कभी 'ओबामा' चमके तो कभी गिरा 'सत्यम'

Wednesday, December 31, 2008

साल 2008

1.
दिल्ली भी थर्राया, जयपुर बंगलोर भी थर्राई
इस साल खुनी खेल में मुंबई भी नहाई
क्या याद करे क्या बात करे साल 2008 की
जश्न अधुरा नए साल का हर दिल में है खौफ समाई.

2.
इस बीच इंडियन क्रिकेट का ऐसा कायापलट हुआ
ICL और IPL का मुकाबला भी गज़ब हुआ
क्रिकेट के आगे फुटबॉल हॉकी पानी भरते रहे
धोनी नम्बर 1 सीढियाँ ऊपर चढ़ते रहे.

3.
विश्व-अर्थव्यवस्था की बिगड़ी ऐसी चाल
मार्केट गिरा मुंह के बल आया ऐसा भूचाल
आया ऐसा भूचाल अमेरिका भी हारा
रिजर्व बैंक हो या वर्ल्ड बैंक सब बेचारा
कहत सुलभ कविराय कोई उपाय न सूझे
रोजगार के हजारो दीये पलभर में बूझे

Monday, December 8, 2008

देश बेहाल है

हर विभाग आज सुस्त और बेहाल है
काम कुछ नही सिर्फ़ हड़ताल है ।

भ्रष्ट्राचार का तिलक सबके भाल है
भेड़िये ओढे भेड़ की खाल है।

उपरवाले तो तर मालामाल है
हमारे खाते में आश्वासनों का जाल है।

घोटालो से त्रस्त देश कंगाल है
नेता बजा रहें सिर्फ़ गाल है।

लोकतंत्र की बिगड़ी ऐसी चाल है
ईमानदार मेहनती जनता फटेहाल है।

चोर पुलिस नेता की तिकरी कमाल है
राजनीति जैसे लुटेरों का मायाजाल है।

Sunday, November 30, 2008

सुनो नेताओं के गुणगान

राजनीत की रसोई में नित बनते नए पकवान
चुनावी हवा बह रही है सुनो नेताओं के गुणगान
सुनो नेताओं के गुणगान जो लगे हैं देश को बांटने
गली गली में घूम रहे हैं सिर्फ़ वोटरों को आंकने
कह सुलभ कविराय आज सुनलो सारे उम्मीदवार
सीधे नरक में जाओगे जो चुनोगे जाती-धर्म की दीवार ॥

- सुलभ 'सतरंगी'

Monday, August 25, 2008

त्रासदी (भ्रष्ट्र तंत्र के ख़िलाफ़ आवाज़ )



उत्तर से लेकर दक्षिण तक
पूरब से लेकर पश्चिम तक

भिन्न भिन्न लोग हैं, मौसम है और
बहुत सी संस्कृति है.
विविधताओं से भरी अपने देश की धरती है.


फिर राजनीति के क्यूँ एक जैसे रंग हैं.
सबके इरादे नेक हैं.
जमकर खाइए, उनकी नीति एक है.


जब भी देश में कोई आपदा आई है
राहत के नाम पर हमारे नेताओं, अफसरों ने
अपनी
जेबों में चांदी उगाई है.

न्याय के लिए तरसते गरीब रहे सदा भूखे.
चाहे बिहार में आई हो बाढ़
या गुजरात में पड़े सूखे !!





लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "