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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्
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Tuesday, April 20, 2010

हसबैंड वाईफ चैटिंग

बहुत दिनों से हास्य की रसोई में कुछ नया खिचड़ी नहीं पका. सो एक पुराना अनुभव दे रहा हूँ, जब Windows की समस्याओं से परेशान होकर एक हास्य  रचना इस प्रकार अवतरित हुई थी..... उन दिनों चैटिंग का मजा बेचलर्स ज्यादा उठाते थे.... लेकिन अब तो हसबैंड मशीनी हो गए...




पत्नी:  Hello
पति:  वेलकम टू  माय ऑफिस (XP)
पत्नी:  और बताओ कैसे हो
पति:  कृपया
पहले लॉगिन करें
पत्नी:  एक ज़रूरी बात सुनो. घर पर कुछ मेहमान आये हैं. शाम को जल्दी लौटना.
पति:  नो गेस्ट यूजर्स आर अलाउड टू एक्सेस.
पत्नी:  और सुनो, घर लौटना तो कुछ पैसे लेकर आना. मुझे कुछ खरीदारी करनी है.
पति: 
सॉरी! देअर इज नोट इनफ मेमरी (मनी) टू रन योर प्रोग्राम.
पत्नी:  मजाक बाद में करना. मैं इंतज़ार करुँगी, जल्दी आना और पैसे भूलना नही.
पति: 
योर रिक्वेस्ट हैज़ नोट बीन डेलीवर्ड. प्लीज चेक योर नेटवर्क कांफीग्रेशन.
पत्नी:  कहां हो तुम?
पति: 
द पेज केन्नोट बी डिसप्लेड.
पत्नी:  मैं पूछ रही हूं, कहां हो तुम?
पति: 
क्लिक "येस" टू कांटीन्यू ओर प्रेस "कैंसल" टू क्विट द प्रोग्राम .
पत्नी:  ओफ्फ़! क्या मुसीबत है.
पति:  सर्वर बिजी. प्लीज ट्राई आफ्टर सम टाइम.
पत्नी:  बंद करो अपनी बकवास !
पति:  प्रेस CTRL + ALT + DEL टू री-स्टार्ट द सिस्टम.
पत्नी:  तुम नही सुधरोगे.
पति:  रिपोर्ट दिस एरर टू माइका-वेबसाइट.
पत्नी:  मैं जा रही हूँ.
पति:  थैंक यु फॉर यूजिंग कूल ऑपरेटिंग सिस्टम. काइंडली यूज दिस फॉर्म टू सेंड योर फीडबैक.
पत्नी:  आइन्दा मुझसे बात करने की कोशिश मत करना.
पति:  नॉव यु केन शटडाउन.
पत्नी:  हुंह !!!!!
पति:  डोंट फोरगेट तो टर्न ऑफ यूपीएस.
 

 - सुलभ

Wednesday, July 29, 2009

लंका दहन (Hasya Vyangya)


रामलीला में लंका दहन का काण्ड चल रहा था।
मंच पर हनुमान जोर जोर से उछल रहा था।
अचानक हो गई गलती भारी। चौपट हो गई पूरी तयारी।
हनुमान सचमुच ही आग लगा दी। पुरे पंडाल में हरकंप मचा दी।
एक सेवक आया भागते हुए। संयोजक से बोला घबराते हुए।
महोदय अनर्थ हो गया, जल्दी कुछ करवाएं।
पंडाल में आग लग गई, चल कर बुझायें।
संयोजक जो था मंत्री का चेला, गुर्राते हुए बोला।
अरे मुरख हम तुझे समझाते हैं, ऐसे मौके बार बार नही आते हैं।
जल जाने दो समूची लंका, आग लगाओ मिलकर सारे।
अपना क्या जाता है, बिमा करवा रखी है प्यारे।

Sunday, July 19, 2009

राईटर बनाम कंप्युटर - व्यंग्य कविता



कोई कहता है - मैं एक लीडर हूँ, कोई कहता है - फटीचर हूँ तो किसी के नज़र में मैं घनचक्कर हूँ ।
मैं आपको बता दूँ - ना तो मैं लीडर हूँ, न फटीचर या न ही कोई घनचक्कर हूँ ।
मैं तो सिर्फ़ एक कंप्यूटर हूँ।

यह सुन एक सज्जन बोले - आप कंप्यूटर कैसे हैं? हमे थोड़ा समझायेंगे, ज़रा खुलासा करके बताएँगे।

इस पर मैंने कहा - आप सूचना युग में नये मालूम पड़ते हैं, लगता है आप कंप्यूटर का इस्तेमाल नही करते हैं।
असल में मैं 'सातवें जेनरेशन का कंप्यूटर' हूँ जो अभी इस संसार में नही आया है।

सज्जन ने आश्चर्य से अपना मुंह खोला और जिज्ञासा से बोला - सातवें जेनरेशन का कंप्यूटर, ये कैसा होता है?
मैंने कहा - ये दिखने में हम इंसानों जैसा ही होता है। और एक बात पर आप जरूर गौर फरमायें। मुझमे और उस सातवें जेनरेशन के कंप्यूटर में है बहुत सारी समानताएं।

वो बहुत तेज़ गति से गणनाएं कर लेता है, नेचर में सुपर फार्स्ट है।
वैसे मेरे प्रोसेसिंग स्पीड भी फर्स्टक्लास है।
वो कंप्यूटर सेकंड भर में चाँद पर से सूचनाएं ले आएगा।
मुझसे भी आप जो मांगो पल भर में मिल जाएगा।
उसके पास बहुत कैपसिटी वाली मेमोरी होगी, जिसमे वो अनगिनत डाटा सेव कर सकता है।
मेरा ह्रदय भी विशाल है जहाँ भावनाओं का समंदर ठहर सकता है।
उस कंप्यूटर के बॉडी में उसके निर्माता कंपनी का लोगो शीट होता है।
अलबत्ता मेरे प्रमाण-पत्रों पर भी मेरे पिता का नाम फिक्सड होता है।

उसके पास एक महत्वपूर्ण चीज़ होती है - मदरबोर्ड। जिसके बिना वो चल नही सकता, जिसके बगैर वो बेजान है।

मेरे पास भी एक मदर (माँ) है जिसके बिना मेरी दुनिया वीरान है।

हम दोनों में एक और बात ख़ास है - लिखने बोलने के अलावा सोचने वाला सोफ्टवेयर भी साथ है।

उस विलक्षण कंप्यूटर को आप जितना भी इस्तेमाल करले वो कभी पुराना नही होगा, कभी ख़त्म नही होगा।
मुझे भी आप जितना चाहो यूज कर लो मेरी कीमत कभी कम नही होगी, मेरा हौसला पस्त नही होगा।

भविष्य का वह कंप्युटर इतना स्मार्ट होगा की यदि आप उसमे शब्द इनपुट करेंगे तो वह आउट पुट मे कवितायें
बनाएगा। मुझे भी आप दर्द और तकलीफें दो तो मैं भी नॉन-स्टाप कवितायें सुनाऊंगा।

इतनी सारी समानताएं होने के बाद भी मुझमे और उस सातवें जेनरेशन के कंप्यूटर में कुछ मौलिक अन्तर होगा।

भले ही वो जीरो मेंटेनेंस पर फुल्ली ऑटोमेटिक हो, मगर उसको वो ही खरीद पायेगा जिसके पास दिमाग और जेब में हजारो का बज़ट हो। लेकिन मुझे तो एक अनाड़ी भी खरीद सकता है, शर्त सिर्फ़ इतनी की उसके दिल में प्यार और इज्ज़त हो।

माना की वह मेडिकल और फाइनेंस के जटिल मामले क्षण भर में सुलझायेगा मगर मेरी तरह खेतों में चने कहाँ से उगायेगा। वो भले ही विद्वान् अर्थशास्त्रियों की तरह लंबे भाषण दे दे लेकिन गरीब भूखी जनता के लिए राशन कहाँ से लायेगा।

वो एडवांस कंप्यूटर बच्चो को मैथ जरूर सिखायेगा लेकिन उसे जंगल की परियों वाली कहानियाँ नही सुनायेगा ।
और जब देखेगा वो आपकी आंखों में आंसू तो उसे पोछने अपना हाथ नही बढ़ाएगा।
क्योंकि वो सातवें जेनरेशन का एक मशीन होगा जिसे लोग कंप्यूटर बोलेंगे ।
और मैं आज के जेनरेशन का एक इंसान हूँ जिसे लोग कवि या राईटर बोलेंगे ॥

Sunday, November 30, 2008

सुनो नेताओं के गुणगान

राजनीत की रसोई में नित बनते नए पकवान
चुनावी हवा बह रही है सुनो नेताओं के गुणगान
सुनो नेताओं के गुणगान जो लगे हैं देश को बांटने
गली गली में घूम रहे हैं सिर्फ़ वोटरों को आंकने
कह सुलभ कविराय आज सुनलो सारे उम्मीदवार
सीधे नरक में जाओगे जो चुनोगे जाती-धर्म की दीवार ॥

- सुलभ 'सतरंगी'

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "