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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्
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Tuesday, June 15, 2010

बेचारा बहुरंगी

# ब्लोगरी की लत युवाओं और कुंवारों के लिए खतरनाक है. प्रस्तुत है एक हास्य व्यंग्य कथा (रिमिक्स)
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अरे बेटी सुनैना
ज़रा दो मिनट पास बैठना |

पापा आज आप बहुत खुश दिख रहे हैं
क्या कोई खुशखबरी है या मुझे देख हंस रहे हैं |

तुम तो जानती हो बेटी
तुम्हारे लिए वर की तलाश है
और आज बात बहुत ख़ास है
मैं मिलकर आया हूँ एक शख्स से
नाम है उसका बेचारा बहुरंगी
चेहरे से दिखता है विचारक
और बातों से कवि
कहने को तो मामूली सोफ्टवेयर प्रोग्रामर है
मगर वो एक ख्यातिप्राप्त ब्लोगर है
नए अनोखे रंग में पोस्ट बनाता है
तकनीक का ज्ञाता है
उभरता  कवि और संस्कारी गुणवान है
बहुत प्रतिभाशाली नौजवान है |

मैं उसकी और क्या तारीफ़ करूँ
सादा जीवन उच्च विचार है
की-बोर्ड का कलाकार है
मुझको तो लड़का बहुत पसंद है
तुम्हारे लिए वो सटीक रहेगा
बिटिया ज़माना इंटरनेट का है
सो यही ठीक रहेगा |







पिता की बात सुन
पुत्री की त्योरियां चढ़ गयी
वो सोफे से उखड़ गयी
डैड ! इट्स टू बैड
आपने मेरे लिए कैसा वर ढूंढा है
और कोई नहीं
एक हिंदी ब्लोगर ढूंढा है

पिताजी तब तो ससुराल में जीना मुहाल होगा
सोचिये मोनिटर स्पीकर के बीच रह
मेरा क्या हाल होगा
वे तो चिपके रहेंगे माउस और की-बोर्ड से
रात दिन प्यार जताएंगे अपने ब्लॉग से
मिनट मिनट पर ब्लॉग को खोलेंगे
मुझसे केवल चाय बनाने को बोलेंगे
रोज़ किसी मुद्दे पर खुद ही उलझ जायेंगे
मामला संवेदनशील है
मुझे समझायेंगे
वे बाते करेंगे हरदम शायराना
पिताजी बहुत मुश्किल होगा निभाना

वे तो शब्दों का जबरन व्यापार करेंगे
दोस्ती दुश्मनी सरेआम बाज़ार करेंगे
सुबह शाम इमेल गपशप प्रचार करेंगे
मासूम टिप्पणीयों पर अत्याचार करेंगे

पिताजी अपनी बिटिया पर तरस खाना
आप क्यूँ नहीं देखते आज का ज़माना
जनसँख्या प्रदुषण कितनी तेज गति से बढ़ रही
सड़के भी वाहनों से है खचाखच भरी
ट्रैफिक अनियंत्रित है औंधे मुंह खड़ी
न्याय व्यवस्था की ऐसी तैसी
भ्रष्टाचार में डूब गयी भारत की घड़ी

जिस देश में पांचवी फेल नेता मंत्री बनता है
वहीं एक ग्रेजुएट बेरोजगारी पर सिसकता है
पापा आप जिसे इंटरनेट क्रान्ति कहते है
वो तो सिर्फ पांच प्रतिशत आकड़ा है
जहाँ ज्ञानी कवि बुढापे तक उचित
पारिश्रमिक को तरसते हैं
वहीं फूहर लाफ्टर शो लाखों चट करते हैं
और आप यहाँ ब्लोगर की बात करते हैं



जब ब्लोगर इतने ही गंभीर हैं तो 
महंगाई के खिलाफ क्यों नहीं लड़ते हैं
जब घंटों ऑनलाइन रहते हैं
तब क्यों नहीं समस्याओं की सूची
अपने विधायक सांसद को मेल करते हैं

और पाठक भी माशा अल्लाह !
सिर्फ टिप्पणियों पर यकीन करते हैं
एक और बातें मुझे बहुत खलती है
पसंद नापसंद का शोर क्यूँ
जब पाठक रोज पहुँचती है

पापा मैं हूँ लड़की आधुनिक दिल की खुली
ऐसे ब्लोगर बलमा से तो मैं कुंवारी भली
मैं सब समझ चुकी हूँ
मुझे सब पता है
मैं भी कभी ब्लोगर रह चुकी हूँ |

- सुलभ


Saturday, December 26, 2009

करोड़पति कन्या - मेरी पहली हास्य कविता


ये साल भी अब जाने जाने को है. वर्ष २००९ बहुत से रोचक, अद्भूत, जोखिम भरे दिन मुझे दिखा गए. इन सबसे ऊपर कुछ कठोर अनुभवों से साक्षात्कार हुआ. नौकरी, स्वरोजगार और महानगर की आपाधापी में कुछ खोया और बहुत कुछ पाया भी. आज कल बहुत राहत महसूस कर रहा हूँ. पिछले साल और इस साल जून तक आजीविका का संकट गहराया हुआ था. व्यक्तित्व निखारना और सतत संघर्ष करना मुझे शुरू से पसंद है, हर साल के अंत में एक बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में ठोस कार्ययोजना बनाना मेरी प्राथमिकता होती है. दोस्ती, रिश्तेदारी, दुनियादारी और पर्यटन में मैं बहुत मशरूफ रहता हूँ. शायद यह भी एक कारण है धीमे गति से लक्ष्य की और बढ़ना. मगर मैं खुश हूँ मेरे चाहने वाले दिन प्रतिदिन बढ़ रहे हैं. मैं भी संचार के विभिन्न माध्यमों से रिश्तों की उष्मा बनाये रखने की कोशिश करता हूँ. इस साल की उपलब्धि है "सयंमित रह कर कैसे सूझबूझ से निर्णय लेने चाहिए ये सब मुझे सिखने को मिला..." और अपने राज्य बिहार में एक बड़े अस्पताल और एक व्यावसायिक प्रशिक्षण अकादमी की स्थापना हेतु एक समिति से जुड़ गया. मानव ही इश्वर है, और मानव सेवा मेरा धर्म  इसी सूत्र पर जीवन संघर्ष और सफलताओं का दौर चलता रहे. परमेश्वर से कुछ ऐसी ही कृपा चाहता हूँ.





चिटठाजगत  में यूँ तो मैं पिछले साल जुड़ गया था. ब्लोग्वानी में इस साल अगस्त माह में शामिल होकर नियमित ब्लोगरी की. जहाँ जरुरत समझा वहां बहस भी किया.  और आप सभी का भरपूर स्नेह और कुछ संस्थानों से मान सम्मान पाया. चाह तो रहा हूँ की बहुत सारी बाते बता दूँ, लेकिन लम्बी पोस्ट लिखने के पक्ष में नहीं हूँ. आजकल ग़ज़ल सिखने और कहने में जोर है. लेकिन मैं मूलतः हास्य व्यंग्य विधा का कवि  हूँ (क्षमा कीजियेगा जब तक आप मान रहे है तभी तक मैं कवि हूँ ). आज से 9-10 साल पूर्व मैं दैनिक अखबारों और मासिक पत्रिकाओं में रचनाये भेजता था. अधिकांश अस्वीकृत कर लौटाई जाती थी. जिस दिन मैं छपता लौटरी जीतने जैसी ख़ुशी होती...

आज सुनिए मेरी पहली हास्य कविता...(साल 2001 में रचित)

 नयी कमीज पर खुशबू छिड़का
सज धज कर नए जूते पहना

तैयार होकर जैसे ही
मैं निकला घर से बाहर
पिताजी ने रास्ता रोका पास मेरे आकर

मुझसे बोले - बेटा अब तो तू बड़ा हो गया है
कद में मेरे सामने खड़ा हो गया है
अपने भविष्य की चिंता क्यों नहीं करता है
दिनभर
सिर्फ आवारागर्दी करता है
क्या तू तरक्की नहीं चाहता है
यूँ ही घर में बेकार रहना चाहता है
अरे! अपने बाप की इज्ज़त का कुछ तो ख्याल कर
जब पढ़ाई लिखाई छोर दी है
 तो कोई अच्छा काम कर.

और सुन ये लेखन वेखन का चक्कर छोड़ दे
इससे नहीं होगा तेरा भला
जा किसी धंधे में जाकर
हाथ पैर चला.

मैं बोला - पिताजी आप मुझे नाहक डांट रहें हैं
मेरे सुन्दर भाग्य को क्यूँ काट रहे हैं.
आप फिकर मत करिए
मेरा भविष्य है रंगीन
करोडपति बनने में बचे हैं कुछ ही दिन.

पिछले साल कालिज के नववर्ष समारोह में
जब मैंने प्रेमरस से भरा एक गीत गाया था
तब एक करोडपति कन्या का
दिल मुझ पर आया था.

पहली मुलाक़ात से ही कायल है
अब मेरे इश्क में घायल है
बहुत बड़े घर की बेटी है
दिखने में सुन्दर, दिमाग की मोटी है
मैंने भी उसे यह बता दिया
तुम्हे ही जीवन संगिनी बनाऊंगा
यह भरोसा जता दिया

अब बस आपको भी
अपना फ़र्ज़ निभाना है
एक दो चक्कर उसके घर के लगाना है
विवाह पूर्व के लड्डू बांटकर
एक रस्म निभाना है

जल्द ही वो बहु बन कर
घर आपके आएगी
साथ में माल मत्ता
पूरा लाएगी

अपनी किस्मत तो एकदम बुलंद
दिखती है
सब कुछ है हाथ में बना बनाया तैयार
बाईगोड कन्या तो है मेरे सर पर सवार

पिताजी टाइम हो गया
वो इंतज़ार में होगी
उससे मिलने जाना है
नयी फिलम आयी है
सिनेमा भी जाना है.


- सुलभ जायसवाल



Thursday, April 9, 2009

दुल्हे की खरीद-फरोख्त (Hindi Hasya Vyangya)

हर लम्हा कट रहा है अब नीलामी के इंतिजार में
बेमेल रिश्ते बेहिसाब कीमत अपनों के बाज़ार में
कैसा ज्ञान कैसी तुलना अब लेन-देन की बात है
मारा गया कवि आज उम्मीदों के संसार में ॥


Tuesday, March 31, 2009

मार्च क्लोजिंग (March Closing - Hindi Hasya Kavita)

खूब हो रहा है आजकल कागजी उठापटक
फंड के फुंडे बनाओ, मुनाफे जाओ गटक
मुनाफे जाओ गटक, भरो इस तरह टैक्स
आयकर बिक्रीकर सब से पाओ रिलैक्स
मार्च क्लोसिंग के वक़्त कुछ भी ग़लत नहीं
उसे भी मिला बज़ट जो पॉलिसी में कभी नहीं ।।

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "