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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Monday, June 1, 2009

दो जून की रोटी का मतलब .

जब कोई अनपढ़ मजदूर दिनभर की दिहारी मिलने के बाद. कपड़ोवाली गलियों से गुजरते हुए राशन के बकाये में सिर्फ आधा चूका पाता है....

जब कोई प्रतिभाशाली नौजवान, एक स्वप्नद्रष्टा किसी अप्ल्शिक्षित के यहाँ चुपचाप नौकरी करता है....

जब कोई कमजोर, अपनों की रय्यत में, अपने ही लोगों की गालियाँ सुन खामोश सहता है...

तब मुझे दो जून की रोटी का मतलब समझ में आता है ।

6 comments:

Ganesh Prasad said...

वाह ! भाई वाह !, मजा आ गया.

बहुत खूब लिखा है आपने, सिने में नस्तर जैसा लगा आपका लेख पढ़कर ! वाह वाह .वाह के अलावा कुछ नहीं है..

लिखते रहे...बधाई...

राज भाटिय़ा said...

भाई बिलकुल सही लिखा है, धन्यवाद

Asha Joglekar said...

बहुत ही सही है दो जून की रोडी का मतलब ।

Asha Joglekar said...

रोटी पढें ।

teriliyejindagi.blogspt.com said...

दो जून की रोटी और गरीबी का दरद बहु बढ़िया।

teriliyejindagi.blogspt.com said...

दो जून की रोटी और गरीबी का दरद बहु बढ़िया।

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "