तक धिनैया तक धिनैया फागुन के बयार
आ गईल हो आ गईल होली के त्यौहार
तक धिनैया तक धिनैया दौड़अ पकड़अ ट्रेन
जल्दी से पहुँचअ गाँव बीत न जाए रैन
तक धिनैया तक धिनैया जियरा नहीं बस में
नशा चढ़ते जात हई सगरे अंग अंग में
तक धिनैया तक धिनैया उड़े रंग गुलाल
लगवा ल रंगवा ल तू हो आपन गाल
तक धिनैया तक धिनैया ढोलक संग मृदंग
झाल तबला हारमोनियम में मचल जंग
तक धिनैया तक धिनैया गाओ मिलके फाग
सुर में सुर मिल जाये छेड़ो अईसन राग
तक धिनैया तक धिनैया एकसे एक पकवान
पुआ पुरी गुझिया बाड़ा और सुपारी पान
तक धिनैया तक धिनैया जीजा गए ससुराल
खूब खातिर भईल उनकर का बताई हाल
तक धिनैया तक धिनैया भांग के करामात
सुन ल सब केहु आज बुढऊ के जज़्बात
तक धिनैया तक धिनैया सजना दूर दराज
गवना न भईल ई साल सजनी बा उदास
तक धिनैया तक धिनैया छूट गईल बिहार
दिल्ली बम्बई के चक्कर में जिनगी बेकार
होली है !!
- सुलभ
8 comments:
सुन्दर फाग ।
होली की शुभकामनायें ।
तक धिनैया तक धिनैया छूट गईल बिहार
दिल्ली बम्बई के चक्कर में जिनगी बेकार ...!
dil ki baat !
.
आंचलिक शब्दावली की इस सुंदर सरस रचना के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें सुलभ जायसवाल जी !
वाह होली वाह की तर्ज़ पर कहना चाहूंगा
"वाह सुलभ वाह !"
:)
सुन्दर प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...होली की शुभकामनाएं....
बहुत अच्छी प्रस्तुति| होली की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ|
Sir, kawita mai PRAWASI Majdoor ki waitha jalakti hai jo maan ko chunai wali hai.--Amitabh
sulabh Ji
तक धिनैया तक धिनैया ढोलक संग मृदंग
झाल तबला हारमोनियम में मचल जंग
होली की इस तान का क्या कहना.... वैसे होली होती ही ऐसी है... देर से ही सही होली की मुबारकबाद
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आए
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