कल दिल्ली के मोलारबंद गाँव से गुजर रहा था बच्चो की टोली ने पानी फेंककर मुझे होली की हुल्लर बधाई दी. मौसम बदल रहा है तो बहुत कुछ बदल रहा है. कुछ पुराने दर्द में कमी हुई तो कुछ नए दर्द में इजाफा भी हो रहा है. बाकी सब नोर्मल है...
हम जिसे समझाने निकले
वो ही हमे घुमाने निकले
क़र्ज़ किसी ने नहीं लौटाया
तकादा की तो बहाने निकले
टच-मी किस-मी गीत बने
बच्चे बच्चे गाने निकले
जिसने दिया था हक हमको
आज माँगा तो ताने निकले
सुब्ह शाम क्रिकेट में डूबे
कैसे कैसे दीवाने निकले
एक रुपया कमा कर आया
केवल बारह आने निकले
बिखरे सारे तिनके चुनकर
सपने फिर से सजाने निकले
4 comments:
एक रुपया कमा कर आया
केवल बारह आने निकले
बिखरे सारे तिनके चुनकर
सपने फिर से सजाने निकले
Kya baat hai!
क़र्ज़ किसी ने नहीं लौटाया
तकादा की तो बहाने निकले
एक रुपया कमा कर आया
केवल बारह आने निकले
Wah..wah... Lajabab !
सुन्दर रचना, लंबे अंतराल बाद आपको पढ़ना अच्छा लगा.
ati sunder
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