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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Sunday, October 23, 2011

ये तो जुल्म हुआ रोशनाई पर

इन दिनो ब्लोगरी के लिये मनोनुकूल वक्त नही मिलता.

आदरणीय श्री दिगम्बर जी ने पुछा कि सुलभ कोई नयी गजल है तो पोस्ट लगाईये उनके विशेष अनुरोध पर कुछ पंक्तियां...


ये तो जुल्म हुआ रोशनाई पर
जो हम लिख रहे हैं मंहगाई पर

हुआ नाम जिनका सचाई पर
वही उतरे अब बेहयायी पर

मोती अश्क के वे छुपा न पाये
बिटिया की रस्मे बिदाई पर

फटेहाल बच्चे क,ख, सिखते
व्यवस्था की फटी चटाई पर

अजी क्या कहें और किसे कहें
रूठे यार की बेअदाई पर 
---

~~ आप सभी साथियों को दीप पर्व की मंगलकामनाएं !!

‍- सुलभ

13 comments:

रचना दीक्षित said...

आपको व आपके परिवार को दीपावली कि ढेरों शुभकामनायें

M VERMA said...

मोती अश्क के वे छुपा न पाये
बिटिया की रस्मे बिदाई पर
बहुत सुन्दर

लोकेन्द्र सिंह said...

bahut badiya rahi ye gajal...
apko bhi deepotsav ki shubhkamnayein...

अंजना said...

nice...

आशुतोष की कलम said...

ये तो जुल्म हुआ रोशनाई पर
जो हम लिख रहे हैं मंहगाई पर

व्यंगात्मक लहजे में बहुत ही वास्तविक बात कही आप ने

Human said...

Bahut achhi rachna likhi hai aapne !



अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।

औचित्यहीन होती मीडिया और दिशाहीन होती पत्रकारिता

Unknown said...

Your thoughts are reflection of mass people. We invite you to write on our National News Portal. email us
Email us : editor@spiritofjournalism.com,
Website : www.spiritofjournalism.com

रजनीश तिवारी said...

फटेहाल बच्चे क,ख, सिखते
व्यवस्था की फटी चटाई पर
बहुत बढ़िया रचना , बधाई

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

खूबसूरत ग़ज़ल, पर जिस के अनुरोध पर लिखा वो तो अब तक यहाँ पहुंचे ही नहीं हैं, चलो मैं उन्हें बताता हूँ

दिगम्बर नासवा said...

Vaah Sulabh Ji .... Aur shukriya NAVEEN Ji ... aapne ghazal mere hi kahne pe likhi aur main hi Samay pe nahi pahuncha... Maafi chaahte hun ....
Is lajawab gazal ki kya Kahoo ... Har sher aaj ki samaajik sthiti pe Sahi baithta hai ... Sulabh Ji apne hi andaaz ki gazal hai ... Vyang ban liye ... Shukriya Sulabh Ji ..

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

मोती अश्क के वे छुपा न पाये
बिटिया की रस्मे बिदाई पर

फटेहाल बच्चे क,ख, सिखते
व्यवस्था की फटी चटाई पर

sunder rachna....

jarjar hoti arthvyawstha aur vyaktigat arthshaastra par achha kataaksh!

हास्य-व्यंग्य का रंग गोपाल तिवारी के संग said...

Achha post.

Smart Indian said...

ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन अब तो एक और ग़ज़ल को मौका मिलना चाहिये। इंतज़ार है!

लिंक विदइन

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"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "