सब से पूछ रहे हैं - आज तारीख केतना है, और कौन दिनवा होली है.
लेकिन कोई ब्लोगर कुछ बता नहीं रहा है. जब तक कोई बताता नहीं है तब तक हम यहीं बैठ के भांग घोटल लस्सी पीते रहेंगे.
तब तक आप लोगन गीत सुनिए...
रंग भरी पिचकारी पिया
तुमने जो चलाई
अंग अंग भीग गया
रंगों से नहाई.
झूम रही बागों में कलियाँ
डाली डाली बौराई
मस्त फागुनी हवाओं की
गुनगुनाती होली आई
रंगों से सराबोर हुई
मेरी सूरत भोली
मैं तो तुमसे हारी 'सुलभ'
और न करो ठिठोली
प्रीत का रंग बरसाना
मेरे जीवन भर हमजोली
रहूँ सदा तेरी बाहों में
मिटे न प्रेम की रोली।
(~~~बधाई~~~बधाई~~~बधाई~~~)
21 comments:
मनभावन गीत,
आपको होली की हार्दिक शुभकामनाये !
Nihayat sundar geet!
Holee mubarak ho!
भाई बहुत कुछ देखा,, किसी को स्ट्रा से लस्सी पीते नहीं देखा था आपको देख लिया
जय हो
होली मुबारकां
होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|
आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं
होली के अवसर पर बेहतरीन रंग-रंगीला गीत। होली मुबारक हो।
अति सुन्दर ।
होली की हार्दिक शुभकामनायें ।
वाह वाह ... का गीत है बचुआ ... सुलभ जी ...
आपको और समस्त परिवार को होली की हार्दिक बधाई और मंगल कामनाएँ ....
रंग-पर्व पर हार्दिक बधाई.
चलिए हम बताये देते हैं ... आज होली है और आपको और आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनाएं !
एकदम मनभावन प्रस्तुति ..हर शब्द दिल पर असर कर गया...आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनायें
मनमोहक प्रस्तुति.
आप को सपरिवार होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ.
होली की हार्दिक शुभकामनाएं ! !
सुन्दर प्रस्तुति, होली की बधाई .
सुलभ भाई
रंग भरा स्नेह भरा अभिवादन !
झूम रही बागों में कलियां
डाली डाली बौराई
वाऽऽह ! बढ़िया लिखा है … हार्दिक बधाई !
♥ होली की शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !♥
होली ऐसी खेलिए , प्रेम का हो विस्तार !
मरुथल मन में बह उठे शीतल जल की धार !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
मिटे न मन की रोली............सुन्दर. होली मुबारक।
सुलभ जी जितना भंग का खुमार नहीं चढ़ा उतना आपकी इस कविता ने शुरुर पैदा कर दिया......
भाई क्या प्यारे प्यारे दुलारे शव्द प्रयोग किये है बस यूं समझिये कि मजा आगया जिन्दगी का ।हमजोली, ठिठोली, बेचारे कान्वेंटी बच्चे तो समझ ही न पाते होंगे कि ये ठिठोली क्या होता है या क्या होती है। बरसाना शव्द दो अर्थ लिये है एक तो वह बरसाना जो होली के लिये और कन्हैया के लिये प्रसिध्द ाहै और दूसरा रंग उपर से डाल कर भिगोना। गुनगुनाती से याद आया
गुनगुनाती हुई आतीं है फलक से बूंदे
कोई वदली तेजी पाजेब से टकराई है।
भगत सिंह ने सही कहा था. लेकिन जिस तरह गांधी को कोंग्रेस ने अपनी कैद में डाला रखा है इसी तरह भगत सिंह को भी कम्यूनिस्टो ने भगतसिंह कोया अपनी बपौती बना दी है. और रक्तरंजित व राष्ट्रद्रोही नक्सल गतिविधियों के लिए भी भगतसिंह की पावन क्रांति के समकक्ष खडा करने की पैशाचिक कोशिशे की जा रही हैं.
सुलभ जी, नमस्कार ..
आप ने अररिया को बहाना बना कर अच्छा सरल गीत बना डाला..बहुत अछे...
अररिया में हम फंस से गए थे जब कलकत्ता में पुरनिया के ? कुछ पाकिस्तानी अजेंतो ने विस्फोट किया था.
ओकरे बाद हम फंस गये पुरनिया में...रात तीन बजे होटल में मेरे कमरे में जोर की खट-खट और..सामने पुलिस पूछने पर पता चला एक सेठ की बेटी ससुराल जाते हुए रास्ते से ही नौकर के साथ फरार हो गई..
आपने पुराणी याद तजा कर दी! धन्यवाद..
Post a Comment