रंज ओ गम अपने सारे भुला दो भाई
किसी से नफरत नही है बता दो भाई।
अपने वतन के वास्ते कितने वफादार हैं
राह में आए गद्दारों को यह दिखा दो भाई।
जब गूंजती हो शहनाई पड़ौसी के आँगन में
गीत तुम भी एक कोई गुनगुना दो भाई ।
झूटे नही थे बचपन की सेवइयां और मेले
गले लगके चाचा के अदावतें मिटा दो भाई।
बेहद पाक मंजर है, चाँद भी सजदे में है
शम्मा मुहब्बत का तुम भी जला दो भाई।।
11 comments:
बढिया लिखा है आपने बधाई
ईद मुबारक बाद
बेहद पाक मंजर है, चाँद भी सजदे में है
शम्मा मुहब्बत का तुम भी जला दो भाई।।
बहुत खूब लिखा है = बहुत सुन्दर पैगाम
वाह
बेहद पाक मंजर है, चाँद भी सजदे में है
शम्मा मुहब्बत का तुम भी जला दो भाई।।khoobsurat chand ke sath khoobsurat post...ईद मुबारक बाद
जब गूंजती हो शहनाई पड़ौसी के आँगन में
गीत तुम भी एक कोई गुनगुना दो भाई ।
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बहुत अच्छा है
भाई वाह क्या बात है, दिल को छु गायी आपकी ये रचना। बहुत-बहुत बधाई//////////
बढ़िया संदेश...उम्दा रचना.
ईद मुबारक!
बेहद पाक मंजर है, चाँद भी सजदे में है
शम्मा मुहब्बत का तुम भी जला दो भाई।।
बहुत खूब.
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
अपने वतन के वास्ते कितने वफादार हैं
राह में आए गद्दारों को यह दिखा दो भाई।
और..
बेहद पाक मंजर है, चाँद भी सजदे में है
शम्मा मुहब्बत का तुम भी जला दो भाई।।
मेरे रोगटे ख़दे कर गये आपके ये शे'र। लाजवाब।
एक ऐसी रचना जो सीधे दिल से लिखी गयी.....अच्छी ग़ज़ल उन्वान बेहद खूबसूरत " चाँद सजदे में है" ...
यथार्थ सुन्दर गज़ल, शम्मा के लिये ’की’ होगी.
Satrangi yado ko dekha mann parsann ho gaya Rightir vady vadya khyalat waly han
ASGAR ALAM
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