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Monday, September 7, 2009

आंखों में आज फिर सैलाब आया (ghazal)


अचानक एक और चुनाव आया
खर्च फिर से बेहिसाब आया।

हर रोज़ होते हैं सिर्फ यहाँ जलसे
ज़म्हूर मे कैसा यह रिवाज़ आया।

पूछा था हमने कभी उनसे खैरियत
बरसों बाद आज जवाब आया।

ज़ख्म ताजे हैं दिल के अब अभी
आंखों में आज फिर सैलाब आया।

बेकरारी है बहुत की अपनों से मिलूं
आज जब मैं अपने गाँव आया

14 comments:

राज भाटिय़ा said...

बेकरारी है बहुत की अपनों से मिलूं
आज जब मैं अपने गाँव आया ॥
बहुत सुंदर भाई वाह वाह आप ने तो कमाल कर दिया बहुत सुंदर लगी आप की रचना.
धन्यवाद

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

आपकी ग़ज़ल पढ़कर हमको बड्डा मज्जा आया.....आपके इन्दरजाल ने हमको भी लुभाया....!!बस इक "लिंग"की गलती सुधार लीजै....आपको भूतनाथ ने यह सब बताया....!!

Basanta said...

Beautiful creation!

Mumukshh Ki Rachanain said...

पूछा था हमने कभी उनसे खैरियत
बरसों बाद आज जवाब आया।

बहुत खूब, आपको तो ज़वाब आ गया, पर उसके मज़मून तो पढ़ लो ज़लेबी सी मिलेगी, न और न छोर, फिर प्रश्न करोगे, फिर इतने ही इंतजार के बाद ऐसा ही उत्तर नसीब होगा, इतिहास गवाह है की इतिहास दोहराता रहता है.

सुन्दर और दमदार, आँखें कोलने वाली ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

नीरज गोस्वामी said...
This comment has been removed by the author.
नीरज गोस्वामी said...

पूछा था हमने कभी उनसे खैरियत
बरसों बाद आज जवाब आया।

आप के ब्लॉग पर आना सफल हो गया इस शेर को पढ़ कर...लिखते रहें...
नीरज

डिम्पल मल्होत्रा said...

बेकरारी है बहुत की अपनों से मिलूं
आज जब मैं अपने गाँव आया ॥ ..bahut khoobsurat likhte hai aap...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

"पूछा था हमने कभी उनसे खैरियत
बरसों बाद आज जवाब आया।"
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं...बहुत बहुत बधाई...

Urmi said...

वाह वाह क्या बात है! बहुत ही ख़ूबसूरत और शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने! इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाइयाँ !

Unknown said...

दिल को छु गयी रचना,
बेकरी है अपनों से इस कदर मिलने की
हमने भी सोचा मिले जाये फिर वो गाँव की गलयारे
दोस्तों की ठिठोली कही बन क्र न रह जये बस एक पहेली

KK Yadav said...

बहुत ही ख़ूबसूरत और शानदार ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई !!

Alpana Verma said...

अचानक एक और चुनाव आया
खर्च फिर से बेहिसाब आया।

बहुत खूब ..सही नब्ज़ पकडी है.

बेकरारी है बहुत की अपनों से मिलूं
आज जब मैं अपने गाँव आया ॥

waah! bahut sundar!!

सुशील कुमार जोशी said...

चलो गाँव आये तो सही
बहुत खूब !!

दिल दुखता है... said...

बेकरारी है बहुत की अपनों से मिलूं
आज जब मैं अपने गाँव आया ॥
बेहतरीन कविता बेहतरीन ............. इन लाइन से मुझे मेरा गावं और अपने याद आ गये

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"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "