मुस्कराता हाथ मलता सोचता रहता हूँ मैं
साथ चलती जिंदगी से क्यूँ खफा रहता हूँ मैं
आएगा इकदिन ज़माना संजीदा रहता हूँ मैं
धूप बारिश सब भुलाकर बस डटा रहता हूँ मैं
आँधियों में भी गिरा हूँ, धूप में भी मैं जला
ख़्वाब जो हरदम सुहाना देखता रहता हूँ मैं
हाले दिल कैसा होगा जब होगा उनसे सामना
राह चलते दिल ही दिल में पूछता रहता हूँ मैं
आबरू जम्हूरियत की रहनुमा सब ले उड़े
बेसहारा मुल्क लेकर चीखता रहता हूँ मैं
मैं जो हुआ घायल तो आएं लोग मुझको देखने
टूटने के बाद भी क्या आईना रहता हूँ मैं
7 comments:
हिंदी दिवस की शुभकामनाएँ
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गूगल हिंदी टायपिंग बॉक्स अब ब्लॉगर टिप्पणियों के पास
आशा और निराशा के बीच डोलते हुए आज के आदमी की व्यथा, गज़ल के प्रारूप में सुन्दर प्रस्तुति..
http://aatm-manthan.com
अपने तो दिल के आइने को अक्स में उतार दिया ....बहुत खूब..
वाह...
बेहतरीन गज़ल...
आँधियों में भी गिरा हूँ, धूप में भी मैं जला
ख़्वाब जो हरदम सुहाना देखता रहता हूँ मैं
लाजवाब शेर..
अनु
सुलभ,
आखिरी अश'आर है हासिल-ए-महफ़िल।
खूबसूरत!
ढ़
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ए फीलिंग कॉल्ड.....
बहुत अच्छी ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई...
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