कुछ ऐसे जिया अब तक की बेखबर लिखता हूँ
न रहज़न न रहबर कोई मेरे मगर लिखता हूँ ।
जेहन से निकाल फेका है अपनी खासियत को
आज से एक आम आदमी का सफ़र लिखता हूँ।
प्यास बुझने की बेचैनी है मौत आने से पहले
जिंदगी को कभी दवा तो कभी ज़हर लिखता हूँ।
खुशबू तुम्हारे साँसों की उस ख़त से जाती नहीं
खोये सफ़र में एक हसीन हमसफ़र लिखता हूँ।
इन्किलाब में शामिल हूँ दोस्तो तुम भी देखो
पैगाम-ए-अमन एक खुशनुमा सहर लिखता हूँ।।
1 comment:
Thanks for nice ghazal.
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