उस कवि की कल्पना सच हुयी, उस कवि को सौ सौ बार प्रणाम !
उस कवि ने लिक्खा था एक गाँव हो
एक अपना बगिया, शीतल छाँव हो
मुँह धोवें हम दातुन तुलसी पानी से
हाथ मिले पहले पशुपंछी किसानी से
एक चुप हो सौ सुख हो टहलने में
केवल एक मेले हों बारह महीने में
कुछ दिनों का उपवास एकांत विहार हो
एक सांझ भोजन माड़भात फलाहार हो
बच्चे हमारे बंधु बांधव परदेस में विद्वान् हों
संकट कोई आए कभी उनके संग हनुमान हों
उसी विधि सब रहें जिस विधि राखे राम
उस कवि की कल्पना सच हुयी,
उस कवि को सौ सौ बार प्रणाम !
- सुलभ जायसवाल, बसंतपुर (अररिया कोर्ट ) से