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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Wednesday, September 8, 2010

अज़ब मुश्किल है

दिन प्रतिदिन उधेड़बुन बढ़ती जा रही, जो कहना चाह रहा था वो कह नहीं पा रहा हूँ. कुछ ऐसे ही हालात में जाने क्या कह गया. लीजिये एक छोटी सी बेबहर ग़ज़ल -


अज़ब मुश्किल है
दूर   मंजिल   है

रस्ता रोक कर
खड़ा क़ातिल है

भरोसा करूँ क्या ?
दोस्त  काबिल  है

मेरे   गुनाहों   में
तक़दीर शामिल है

बार बार फिसलता
आवारा एक दिल है

भाव हैं शब्द नहीं
शायरी मुश्किल है

- सुलभ 

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "